बैर द्वेष और बढ़ी क्यों हिंसा चारों ओर दुहाई है. भागो भागो कह सबने बस अपनी जान बचाई है. सोचो जिनके माँ बाप न बहिने और न भाई हैं. गई त्याग बलिदान भावना पल में सब बिसराई है. जाने क्यों सब भूल गए आपस में हम सब भाई है. बैर द्वेष और बढ़ी क्यों हिंसा चारों ओर दुहाई है. भरें हैं अपना पेट सभी ना याद किसी की आयी है. हर तरफ मची है लूटपाट जैसे बुद्धि सठियाई है. महंगाई की मार से अब तो जनता भी उकताई है. नेताओं की बात करें क्या झूठी कसमे खायीं है. किया खोखला देश सभी ने मिलकर चपत लगाई है. बैर द्वेष और बढ़ी क्यों हिंसा चारों ओर दुहाई है. बढ़ा है भ्रष्टाचार दिनोदिन बढ़ती गई बुराई है. दीनो और दुखियों में जैसे गमी उदासी छाई है. निर्दोषों को मिले सजा अब चोरों की सुनवाई है. भाई भाई के बीच न जाने कैसी गहरी खाई है. कुछ देखो जानो और समझो क्यों घर में आग लगाई है. बैर द्वेष और बढ़ी क्यों हिंसा चारों ओर दुहाई है. वीर भगत ने हँसकर फांसी गले लगाई है. देश की खातिर ही कितनो ने अपनी जान गँवाई है. ऐसे वीर शहीदों ने आज़ादी हमें दिलाई है. आन रखो इस देश की यह भी तो भारत माई है. तो करो नमन उस मां को जिसकी धानी चुनर लहराई है. बैर द्वेष और बढ़ी क्यों हिंसा चारों ओर दुहाई है. — अमर लता (Lucknow U.P.)
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