योग दिव्य है नित अपनाओ मन की बगिया को महकाओ आत्म शांति का जला के दीपक हर दिन जीवन स्वर्ण बनाओ योग दिव्य है नित अपनाओ मन की बगिया को महकाओ
– 1 – सांझ चलो या भोर चलो सब चलो योग की ओर चलो तन मन सुन्दर स्वस्थ करो सब बच्चे वृद्ध किशोर चलो मन हो शीतल दूर व्यथा हो आनन्द मग्न हो खुशी मनाओ योग दिव्य है नित अपनाओ मन की बगिया को महकाओ – 2 – अनुलोम विलोम और प्राणायाम उच्चकोटि के योग महान करते नित मानव कल्यान चन्द्रासन और सूर्य प्रणाम जीने की ये विधि है जानो मुदित रहो हर्षित हो गाओ योग दिव्य है नित अपनाओ मन की बगिया को महकाओ – 3 – मुनियो की ये देन है अनुपम विश्वधरा हो अपना मधुबन अपनी शक्ति को पहचानें शूल नहीं अब फूल चुने हम ध्यान योग का तरूवर सींचो प्रेम सुधारस यूं बरसाओ योग दिव्य है नित अपनाओ मन की बगिया को महकाओ – 4 – कुछ ठहरो कुछ ध्यान करो तुम खुद को धन्य महान करो ज्ञान चक्षु को खोल के मानव अमृत का रस पान करो योग ध्यान की अलख जगाओ रोग कष्ट से मुक्ति पाओ मन की बगिया को महकाओ आत्म शांति का जला के दीपक हर दिन जीवन स्वर्ण बनाओ – अमर लता, लखनऊ (भारत)
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